गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

कीड़े खाने वाले पौधे

        आप ये तो जानते ही होंगे कि पेड़-पौधों का भोजन पानी और खाद है।लेकिन क्या आपको पता है कि कुछ पेड़-पौधे इन्सेक्ट्स ईटिंग प्लांट्स (कीटभक्षी) भी होते हैं।यानि मिट्टी में पनप रहे कीडे-मकोड़ों को अपना आहार बनाते हैं।
      दरअसल ये पौधे दलदली जमीन पर उगते हैं।दलदली जमीन पर नाइट्रोजन बहुत कम मात्रा में पाई जाती है इसलिये मिट्टी से पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन न मिल पाने के कारण ये पौधे अपने लिये प्रोटीन नहीं बना पाते।यही कारण है कि यह अपना भोजन कीड़े-मकोड़ों को बनाते हैं।
       
फ़्लाईट्रैप(चित्र-गूगल से साभार)
विश्व में कीड़े खाने वाले पौधों की लगभग 400 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।
वीनस या फ़्लाईट्रैप प्रजाति के कीटभक्षी पौधों का भोजन करने का अंदाज़ काफ़ी दिलचस्प होता है। वीनस की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे बाल उगे होते हैं, जैसे ही कोई कीड़ा इन पौधों की पत्तियों के बालों से छू जाता है, वैसे ही पत्ती किताब की तरह बंद हो जाती है।कुछ ही सेकेंड्स में कीड़े का दम घुट जाता है।जानते हो यह पौधा कीड़े को पचाता कैसे है?जब कीड़ा पत्ती के अंदर बंद हो जाता है,उसी समय पत्ती की ऊपरी सतह में मौजूद ग्लैंड्स (ग्रंथियां) कीड़े के मुलायम हिस्से को पचा लेती हैं।इस पूरे काम में सिर्फ़ एक सेकेंड लगता है। एक सेकेंड के बाद ही पत्ती खुल जाती है और कीड़े मृत शरीर को नीचे फ़ेंक देती है।
           
ड्रासेरा(चित्र-गूगल से साभार)
सनड्यू
या ड्रासेरा भी इसी तरह का पौधा होता है,जिसकी लंबाई आठ से बीस सेंटीमीटर तक होती है।इस कीटभक्षी पौधे की पत्तियों से चिपचिपा पदार्थ निकलता रहता है।यह पदार्थ ओस की तरह दिखता है,जिसमें से बहुत तेज़ महक निकलती है।इस महक से कई कीट-पतंगे पौधे की ओर खिंचे चले आते हैं। लेकिन पत्ती पर बैठते ही कीट-पतंगे उसमें चिपक जाते हैं।उसी समय पौधे में निकले रोएं कीड़ों को अपनी चपेट में ले लेते हैं।इस चिपचिपे पदार्थ में एंजाइम होते हैं,जो कीड़े के शरीर से नाइट्रोजन सोख लेते है। कीड़े के शरीर से रस चूसने के बाद पत्तियों के रोएं फ़िर से सीधे हो जाते हैं और मरा हुआ कीड़ा नीचे गिर जाता है।
            
रैफ़्लेशिया(चित्र-गूगल से साभार)
इन कीड़े खाने वाले पौधों के अलावा भी
अमरबेल, रैफ़लेशिया जैसे परजीवी पौधे भी हैं,जो दूसरे पेड़-पौधों के सहारे अपना भोजन तैयार करते हैं। ये पौधे लताओं की शक्ल में होते हैं। ये जिस पेड़ या पौधे पर बेल कि तरह चढ़े होते हैं उसी के शरीर से पोषक तत्व खींचकर अपना काम चलाते हैं। धीरे-धीरे वह पौधा सूखता जाता है और परजीवी पौधा या बेल हरा-भरा होता जाता है।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (18-10-2014) को आदमी की तरह (चर्चा मंच 1770) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं

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