गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

कुहरे में—।

कुहरे में जब सोया रहता
पूरा शहर हमारा
कोई कम्बल ओढ़े रहता
किसी को हीटर प्यारा।

ऐसी ठण्ढक में भी रखते
कुछ लोग ध्यान हमारा
मीलों सायकिल चला के लाते
अखबार हमारा प्यारा।

अलसाए हम सोते रहते
वो करते काम हमारा
चौका बर्तन करती काकी
गुदड़ी का उन्हें सहारा।


हाड़ कंपाते जाड़े में भी
भैया जी रिक्शा ले आते
क्या सोना उनको पसन्द नही
या फ़िर कुहरा उनसे हारा।
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डा0हेमन्त कुमार

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