फूलों जैसे कपड़े
पहने,
जब सोकर उठ जाता सूरज।
बड़े सवेरे छत पर आकर,
हमको रोज जगाता सूरज।
जाड़े में धीमे
से छूकर,
सर्दी दूर भगाता
सूरज।
मगर दोपहर में, गरमी की,
हमको बहुत सताता सूरज।
शाम हुई तो गांव के पीछे,
पेड़ों पर टंग जाता सूरज।
रात हुए घर वापस आकर,
बिस्तर पर सो जाता
सूरज।
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गीतकार-डा0 अरविन्द दुबे
पेशे से चिकित्सक एवम शिशु रोग विशेषज्ञ डा0 अरविन्द दुबे बाल एवम विज्ञान साहित्य लेखन के क्षेत्र में एक चर्चित एवम
प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं।