रविवार, 6 नवंबर 2016

दस्तक

दस्तक दी जाड़े ने देखो
हर घर में अब  धीरे से
स्वेटर मफलर टोपे देखो
बक्से से झांके धीरे से।

रात में पंखा बंद कर देतीं
मम्मी जी अब धीरे से
कालू कूं कूं बोरी मांगे
पापा जी से धीरे से।

सभी रेंगने वाले प्राणी
शीत निद्रा में धीरे से
गौरैया के बच्चे सारे
बाहर झांकें धीरे से।

खिड़की के पीछे से सूरज
झांके अब तो धीरे से
पार्क में धूप के छौने फुदकें
हरी घास पर धीमे से।

दस्तक दी जाड़े ने देखो
हर घर में अब  धीरे से।
000

डा0हेमन्त कुमार

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १५०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है - १५०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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